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देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

Edited by वर्षा | Hindi Filmipop | Updated: 3 Dec 2022, 3:41 pm
देव आनंद बॉलीवुड के ऐसे अभिनेता थे, जिनके स्टारडम और स्टाइल आज भी इंडस्ट्री में छाया है। तीन दिसंबर 2011 वो दिन था जब देव साहब इस दुनिया से रुखसत हो गए। आज उनकी 12वीं पुण्यतिथि है। देव आनंद भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन आज भी उनकी फैन फॉलोइंग कम नहीं है। शायद ही आपको इस बारे में मालूम हो कि देव साहब गुलाम भारत में अंग्रेज सरकार की नौकरी करते थे और हीरो बनने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ी और मुंबई पहुंच गए। आज हम आपको बॉलीवुड के इस सितारे की पहली नौकरी और स्ट्रगल का किस्सा बताते हैं।
हीरो बनने के लिए छोड़ी नौकरी
देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

देव आनंद का जन्म साल 1923 में पंजाब के गुरदासपुर में एक सामान्य परिवार में हुआ। वे अपने माता-पिता की पांचवीं संतान थे। देव आनंद को बचपन से ही फिल्में देखना पसंद था। स्कूल खत्म हो जाने के बाद उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया। परिवार की आर्थिक स्थित ठीक न हो पाने के चलते वे अपने कॉलेज के साथियों के साथ विदेश पढ़ने नहीं जा पाए और भारत में ही रहकर नौकरी की तलाश करने लगे।
बैंक में क्लर्क की नौकरी की
देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

कॉलेज खत्म हो जाने के बाद देव आनंद ने भारतीय नौसेना में भर्ती होने की कोशिश की लेकिन वे रिजेक्ट हो गए। इसके बाद उन्हें बैंक में बतौर क्लर्क नौकरी मिल गई। यह उनकी पहली नौकरी थी। लेकिन बचपन से हीरो बनने के सपने के आगे बैंक की नौकरी को छोड़ कर वे मुंबई पहुंच गए।

30 रुपये लेकर आए मुंबई
देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

देव आनंद साहब अपने सपने को सच करने के लिए मुंबई पहुँच गए और उनके जेब में मात्र 30 रुपये थे। वे काम की तलाश में दिन भर एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो जाते लेकिन उन्हें काम नहीं मिला। इस भागादौड़ी में उनके 30 रुपये भी खर्च हो गए और उन्होंने खर्चे-पानी के लिए अपने बचपन में कलेक्टर किए स्टाप की ऐल्बम तक बेचनी पड़ी। इसके साथ ही मुंबई में काम की तलाश के साथ उन्होंने क्लर्क का काम किया जहां उन्हें 85 रुपये प्रतिमाह तनख़्वाह मिलती थी। हालाँकि ये नौकरी भी उन्होंने ज़्यादा दिनों तक नहीं की।

ब्रिटिश सरकार की नौकरी पकड़ी
देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

इस काम को छोड़कर देव आनंद साहब ने एक बार फिर से ब्रिटिश सरकार की नौकरी पकड़ी। इस बार उन्हें ब्रिटिश आर्मी के सेंसर ऑफिस में सेना के जवानों और अफसरों के लिखे ख़त पढ़ने की नौकरी मिली। इस नौकरी में उन्हें 165 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता था।

क्या थी देवानंद की वो नौकरी
देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

दरअसल सेना यह स्पष्ट करना चाहती थी कोई भी जवान या अफसर ऐसा कुछ खत में न लिखे जिससे गोपनीय सूचना बाहर लीक हो इस लिए वे खतों को सेंसर करती थी। ये नौकरी देव आनंद साहब को काफ़ी पसंद आ रही थी कि एक ख़त ने उनकी ज़िंदगी बदल कर रख दी।

सैनिक के खत ने बदली ज़िंदगी
देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

एक दिन देव आनंद साहब सेना के किसी अफ़सर का अपनी पत्नी को लिखा ख़त पढ़ रहे थे, जिसमें लिखा था कि, ‘काश, मैं अपनी नौकरी छोड़ पाता और सीधा तुम्हारे पास आता और तुम्हारी बांहों में होता।’ ख़त की इस लाइन ने देव साहब के हीरो बनने की चाहत को फिर से जगा दिया और वे एक बार फिर से नौकरी छोड़ हीरो बनने की राह में आगे निकल आए। फ़िल्म में काम ढूंढने के सिलसिले में ट्रेन से यात्रा करने के दौरान देव साहब के पता चला कि ‘प्रभात फ़िल्म कंपनी’ के अपनी अपकमिंग फ़िल्म के लिए एक नए चेहरे की तलाश है।

ऐसे बदली किस्मत
देव आनंद ने पेट पालने के लिए किए थे ऐसे-ऐसे काम, फिर वक्त का चक्का घूमा और हिला दी फिल्म इंडस्ट्री

ये सुनते ही देव आनंद प्रभात फ़िल्म कंपनी के दफ्तर पहुंचे और कंपनी के बॉस बाबूराव से हुई। उन्होंने पीएल संतोषी से मिलने को कहा और देव साहब के साथ तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट कर लिया। यहीं से उन्हें फिल्म में काम मिला। हालांकि, देव साहब को अशोक कुमार की फिल्म ‘जिद’ से पहचान मिली।