यूं तो ढेरों लोग हीरो बनने का सपना लिए मायानगरी पहुंचते हैं। कुछ का ये सपना बनता है तो कुछ का टूटता है। कोई हीरो बनता है तो कोई विलेन। एक कहानी ऐसे ही विलेन की है जो पाकिस्तान से भागकर मुंबई आया और बॉलीवुड का खूंखार विलेन बन गया। जी हां, ये कहानी है सुरेश ओबेरॉय की। 17 दिसबंर 1947 को पाकिस्तान के क्वेटा में सुरेश ओबेरॉय का जन्म हुआ। जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो वह चार भाई बहनों के साथ भारत आ गए थे। आइए आज आपको उनकी पूरी कहानी को सुनाते हैं कि वह कैसे मुंबई पहुंचे, क्या क्या संघर्ष किए और उनका फिल्मी करियर।
जब मिला सुरेश ओबेरॉय को फेम
सुरेश ओबेरॉय ने करियर की शुरुआत रेडियो शोज से की। फिर वह स्टेज प्ले भी करने लगे। धीरे धीरे उन्हें विज्ञापनों के लिए भी काम मिलने लगा। फिर साल 1977 में उन्हें बॉलीवुड में जीवन मुक्त फिल्म से डेब्यू करने का मौका मिला। इस फिल्म से उन्हें फेम नहीं मिला। तीन साल के इंतजार के बाद उनकी फिल्म एक बार फिर रिलीज हुई। जिसमें वह दिप्ति नवल के साथ नजर आए। इस फिल्म से उन्हें खूब पॉपुलैरिटी मिली।
कारवां बढ़ता गया
फिर वह मुक्कदर का सिकंदर, एक बार कहो, खंजर, फिर वही रात जैसी फिल्मों में नजर आए। लवारिस फिल्म के लिए उन्हें कई बड़े अवॉर्ड्स में नॉमिनेशन भी मिला। उनके करियर का कारवां चलता गया। एक के बाद वह एक बड़ी फिल्में करते गए।
जब जीता था नेशनल अवॉर्ड
साल 1987 में आई फिल्म मिर्च मसाला के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तो घर एक मंदिर के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला। सुरेश ने धड़कन और कश्मीर जैसे टीवी शोज में भी काम किया है। साल 2004 में उन्होंने राजनीति में भी हाथ अजमाया। वह भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़े और प्राइमरी मेंबर के रूप में काम करने लगे।
सुरेश ओबेरॉय की पर्सनल लाइफ
सुरेश ओबेरॉय ने साल 1974 में खुद से 8 साल छोटी यशोदरा से शादी रचाई थी। दोनों के एक बेटा और एक बेटी हैं। बेटा विवेक ओबोरॉय हैं जो बॉलीवुड के मशूहर एक्टर हैं। सुरेश ओबेरॉय के भाई कृष्ण ओबेरॉय हैं जिनके बेटे अक्षय ओबेरॉय हैं और वह भी बॉलीवुड फिल्में करते हैं।