
सब ने कहा- ऐसी फिल्म कोई नहीं देखेगा
निर्देशक श्याम बेनेगल इस फिल्म को बनाना चाहते थे। वो इसकी कहानी 'दुग्ध क्रांति' यानी श्वेत क्रांति से जोड़कर लिख चुके थे। प्री-प्रोड्क्शन का सारा काम हो चुका था। बस फिल्म पर पैसा लगाने वाले प्रोड्यूर्स की कमी थी। कोई इस कहानी पर पैसा नहीं लगाना चाहता था। सबको लगता था कि ऐसी फिल्म को कोई नहीं देखेगा।

मंथन मूवी के एक सीन में स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और गिरीश कर्नाड
वर्गीस कुरियन ने श्याम बेनेगल को दी सलाह
श्याम बेनेगल ने वर्गीस कुरियन को अपनी परेशानी सुनाई। वर्गीस कुरियन अमूल को-ओपरेटिव के संस्थापक और भारत में श्वेत क्रांति लाने वाले शख्स थे। वर्गीस ने श्याम बेनेगल को सलाह दी कि वो अमूल सोसाइटी से जुड़े किसानों की मदद लें। श्याम बेनेगल को बात समझ नहीं आई। तब वर्गीस कुरियन ने समझाया कि इस सोसाइटी से जो किसान जुड़े हुए हैं, वह इस फिल्म में पैसा लगाएंगे। सोसाइटी से जुड़े किसानों की संख्या लाखों में है। यानी अगर सभी ने एक छोटी रकम का भी अंशदान दिया तो आप यह कहानी दुनिया के सामने आराम से ले जा पाएंगे।

गिरीश कर्नाड
5 लाख किसानों ने दिए दो-दो रुपये
अमूल सोसाइटी से तब पांच लाख किसान जुड़े थे। सबने दो-दो रुपये इकट्ठा किए। इस रुपये से फिल्म ‘मंथन’ का निर्माण किया गया। ‘मंथन’ बन गई। रिलीज हो गई। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी इसे मिला। विजय तेंदुलकर को इस फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखने के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (बेस्ट स्क्रीनप्ले) मिला। इस फिल्म ने यह भी साबित किया कि अगर नीयत सही हो, तो इंसान कुछ भी कर सकता है। बस एक कदम आगे बढ़ाने की जरूरत होती है।